सामान्य :
भारत के ह्रदय स्थल के रूप में स्थित मध्यप्रदेश प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता विशेषकर वन एवं वन्यप्राणियों की विविधता के लिये जाना जाता है । मृदा और जल के संरक्षक के रूप में वनों की महत्ता अद्वितीय है । मध्यप्रदेश की विभिन्न पर्वत श्रृंखलाएं एवं उनका जलग्रहण क्षेत्र वनाच्छादित होने के कारण ही कृषि एवं कृषि पर आधारित जनसंख्या का पोषण कर पाती है । यहां उष्ण कटिबंधीय शुष्क, पतझड वाले सागौन, मिश्रित तथा साल के वन है । मंडला, डिण्डोरी, शहडोल तथा बालाघाट में साल वन हैं चंबल क्षेत्र ग्वालियर, शिवपुरी, भिण्ड तथा दतिया में करधई तथा झाडीदार वन है, शेष क्षेत्र में बहुमूल्य सागौन वन है । वनों से लकडी के अलावा बांस एवं प्रचुर मात्रा में विभिन्न प्रकार की लघुवनों एवं औषधीय मिलती है । प्रदेश औषधीय पौधों के समृद्ध संसाधनों से भी परिपूर्ण है । चूंकि वनों में तथा वनों की सीमा के आस-पास रहने वाले आदिवासी एवं अन्य ग्रामीण जनता का बहुत बडा भाग वनों पर निर्भर है, अत: वन विभाग का प्रमुख दायित्व वनों का वैज्ञानिक दृष्टि से इस तरह प्रबंधन करना है कि न सिर्फ ग्रामवासियों को वनों से जीविकोपार्जन का स्त्रोत निरंतर बना रहे, बल्कि प्रबंधन में उनकी भागीदारी भी सशक्त हो और वन एक प्राकृतिक धरोहर के रूप में संवहनीय, संरक्षित एवं संवर्धित संसाधन के रूप में विकसित करता रहे ।
मध्यप्रदेश में वन विभाग की स्थापना वर्ष 1860 से ही वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन प्रारंभ हो गया था और संभवत: मध्यप्रदेश भारत का पहला राज्य है जहॉं भारत की प्रथम वन नीति 1894 से ही वर्किंग प्लान बनाने का कार्य प्रारंभिक स्तर पर चालू किया गया था । इस गौरवमय परम्परा को आगे बढाने में आज भी वन विभाग गौरवान्वित महसूस करता है ।
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अधीनस्थ क्षेत्रीय कार्यालय :
वन क्षेत्रों का वैज्ञानिक प्रबंधन और वन संसाधन का संरक्षण व संवर्धन क्षेत्रीय स्तर पर गठित प्रशासनिक इकाईयों के माध्यम से किया जाता है । क्षेत्रीय इकाईयों का विवरण तालिका में दर्शित है ।
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क्षेत्रीय इकाईयों का विवरण |
इकाईयों का प्रकार
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संख्या |
वृत्त |
16 |
वनमंडल |
63 |
उपवनमंडल |
135 |
परिक्षेत्र |
473 |
उप वन परिक्षेत्र |
1871 |
परिसर |
8286 |
मध्यप्रदेश में आरक्षित एवं संरक्षित वनों से संबंधित