संरक्षित एवं आरक्षित वनों का गठन :
(क) आरक्षित वन गठित करने हेतु भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 4 से 20 तक की लम्बी प्रक्रिया से गुजरना होता है। अत: वनभूमि अधिसूचित करने की प्रक्रिया में किसी क्षेत्र को वर्तमान में वैधानिक संरक्षण देने के लिये सर्वप्रथम भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 29 के अन्तर्गत संरक्षित वन अधिसूचित किया जा रहा है।
(ख) असीमांकित संरक्षित वनों, जिन्हें नारंगी क्षेत्र कहा जाता है, के सर्वेक्षण में उपयुक्त पाये गये क्षेत्रों को भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 4 में अधिसूचित किये जाने की कार्यवाही प्रचलित है।
(ग) अनुपयुक्त पाये गये नारंगी क्षेत्रों के निर्वनीकरण हेतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय से अनुमति प्राप्त करने के लिये जानकारी संकलित की जा रही है।
(घ) आरक्षित वनों में व्यक्तिगत एवं सामुदायिक अधिकारों का व्यवस्थापन कर दिया जाता है। संरक्षित वनों में से ऐसे अधिकार यथावत रहते हैं, अत: इनका अभिलेखन किया जाना आवश्यक है। वर्ष 1950 में जागीरदारी एवं जमींदारी प्रथा समाप्त होने के पश्चात शासन के पक्ष में वेष्ठित भूमियों को वर्ष 1958 में व्यक्तिगत एवं सामुदायिक अधिकारों का अभिलेखन किये बिना ही संरक्षित वन अधिसूचित कर दिया गया था। इन अधिकारों का अभिलेख अभी तक लम्बित है। अधिकारों के अभिलेख का काय सक्षम राजस्व अधिकारी द्वारा किया जाना है।
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वन राजस्व सीमांकन :
वर्ष 2004 से मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश शासन के निर्देशानुसार वन एवं राजस्व भूमि सीमा विवाद के निराकरण की कार्यवाही प्रचलित है। वन सीमा से लगे 19,714 ग्रामों में से 19,554 ग्रामों में वन एवं राजस्व सीमाओं के सत्यापन उपरान्त अभिलेखों को अद्यतन् करने की कार्यवाही पूर्ण हो चुकी है। शेष ग्रामों में कार्यवाही पूर्ण करने हेतु प्रयास जारी है। |
वन व्यवस्थापन :
भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा "4" के अन्तर्गत प्रस्तावित आरक्षित वन अधिसूचित किये जाते हैं। प्रस्तावित आरक्षित वनों के वन खण्डों की धारा 6 से 19 तक की विधिक कार्यवाही करने हेतु वन व्यवस्थापन अधिकारियों की नियुक्तियाँ की जाती हैं। वर्ष 1988 से वन व्यवस्थापन के लिए अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) को वन व्यवस्थापन अधिकारी बनाया गया। वर्ष 1988 से यह कार्य विभिन्न कारणों से पूर्ण नहीं होने पर वन विभाग द्वारा दिसम्बर, 2003 में वन व्यवस्थापन अधिकारियों हेतु मार्गदर्शी निर्दश/प्रक्रिया संकलित कर जिलाध्यक्ष के माध्यम से समस्त वन व्यवस्थापन अधिकारियों को भेजी गई तथा उनका प्रशिक्षण भी जिला स्तर पर कराया गया फिर भी वन व्यवस्थापन के कार्य में वांछित प्रगति प्राप्त नहीं हुई।
वर्तमान में भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा-4 में अधिसूचित 6,520 वनखण्डों की 30,04,624 हेक्टेयर भूमि के संबंध में धारा 6 से 19 तक की वन व्यवस्थापन की कार्यवाही लंबित है।
दिनांक 03.05.2012 को वन विभाग की समीक्षा में माननीय मुख्यमंत्री द्वारा निर्देश दिये गये थे कि "कई वर्षों से लंबित वन व्यवस्थापन कार्य को शीघ्र पूरा करने के लिये पूर्णकालिक वन व्यवस्थापन अधिकारी के पदस्थापना हेतु प्रस्ताव तत्काल प्रस्तुत किये जाये" माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देश के पालन में टी क्रमांक/383 दिनांक 17.05.2012 से प्रदेश के 16 वन वृत्तों में अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) के स्थान पर पृथक से उप जिलाध्यक्ष स्तर के स्वतंत्र प्रभार वाले अधिकारियों को वन व्यवस्थापन अधिकारी नियुक्त करने हेतु प्रस्ताव भेजे गये थे लेकिन पदस्थापना अभी तक अपेक्षित है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा टीप क्रमांक/2367 दिनांक 01.01.2016 से मध्यप्रदेश शासन, वन विभाग को बैतूल जिले में पूर्णकालिक वन व्यवस्थापन अधिकारी की पदस्थापना हेतु पुन: लेख किया गया है।
मध्यप्रदेश शासन मुख्य सचिव, कार्यालय का पत्र क्रमांक-974/एफ-25-08/2015/10-3 दिनांक 01 जून, 2015 द्वारा भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा-4 के अन्तर्गत प्रकाशित अधिसूचनाओं में सम्मिलित पूर्णत: निजी स्वामित्व के भू-खण्डों को प्रस्तावित आरक्षित वन खण्ड से पृथक रखने बावत् कार्यवाही करने के निर्देश समस्त कलेक्टर मध्यप्रदेश को दिये गये हैं।
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वनग्रामों की भूमि का प्रबंधन :
- वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करना -
मध्य प्रदेश के 29 जिलों में 925 वन ग्राम हैं, जिनमें से 827 वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने के लिये वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत स्वीकृति हेतु भारत सरकार पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जनवरी 2002 से जनवरी 2004 तक की अवधि में जिलेवार प्रस्ताव प्रेषित किये गये थे। इन 827 वन ग्रामों में से 310 वन ग्रामों की सैद्धांतिक स्वीकृति भारत सरकार पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा अक्टूबर 2002 से जनवरी 2004 के मध्य जारी की गई थी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याचिका क्रमांक/337/1995 की आई.ए. क्रमांक-2 में दिनांक 13.11.2000 से निर्वनीकरण पर रोक लगाई गई है एवं भारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की स्वीकृति पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 24.02.04 से स्थगन जारी किया गया है। इस कारण शेष 517 वन ग्रामों के लिये भी स्वीकृति लम्बित है। वैसे भी वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा 310 वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित किये जाने की सैद्धांतिक स्वीकृतियों में अधिरोपित शर्तों की पूर्ति किये जाने में व्यवहारिक कठिनाईयाँ हैं। शर्तों में एक शर्त यह भी है कि वन ग्रामों से बनाये गये राजस्व ग्रामों का प्रशासनिक नियंत्रण वन विभाग का ही रहेगा।
अनुसचित जन जाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकरों की मान्यता) अधिनियम, 2006 की धारा-3 (1) (ज) में वनग्रामों के संपरिवर्तन के अधिकार का उल्लेख है।
- वर्ष 1980 के पूर्व राजस्व विभाग हो हस्तांतरित वन ग्राम
वर्ष 1980 के पूर्व वन विभाग द्वारा राजस्व विभाग को 533 वन ग्राम हस्तांतरित किये गये। इनमें से केवल 06 वन ग्राम ही निर्वनीकृत हुये हैं। इन 06 वन ग्रामें का हस्तांतरण दिसम्बर 1975 में हुआ था और इनमें से 02 वन ग्राम जून 1978 में, 02 वनग्राम दिसम्बर 1979 में और 02 वन ग्राम सितम्बर 1986 मे निर्वनीकृत किये गये हैं। इससे स्पष्ट है कि इन भी 533 वन ग्रामों को राजस्व ग्राम बनाये जाने की मंशा से ही इन्हें राजस्व विभाग को हस्तांतरित किया गया था लेकिन उक्त 06 वन ग्रामों के अतिरिक्त शेष 527 वन ग्रामों की वन भूमि को अभी तक निर्वनीकृत नहीं किया गया है। वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने की मंशा से राजस्व विभाग को हस्तांतरित उक्त 533 में से शेष 527 वन ग्रामों की वनभूमि को हस्तांतरण के दिनांक से निर्वनीकृत करने के लिए वन (संरक्षण) 1980 प्रभावशील होने या नहीं होने बावत् अभिमत हेतु विधि विभाग में कार्यवाही प्रचलित है।
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वन अधिकार अधिनियम, 2006 :
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के क्रियान्वयन की कार्यवाही आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा की जा रही है और पात्र लोगों को वितरित अधिकार पत्रों से संबंधित अभिलेखों के संधारण का दायित्व वन विभाग को सौंपा गया है। |